Monday 4 July 2011

पड़ाव आये कई एक घर नहीं आया
कि रास अब के भी हमको सफ़र नहीं आया

किया था ख़ल्क अजब आसमान आँखों ने
कहाँ का चाँद, सितारा नज़र नहीं आया


जो एक बार गया सब्ज पानियों की तरफ़
सुना गया है कभी लौट कर नहीं आया

चिराग़ जलते हवाओं की सरपरस्ती१ में
हमारे लोगों ! तुम्हें ये हुनर नहीं आया

भुलाके तुझको ख़जिल२ होते और क्या होता
भला हुआ कि दुआ में असर नहीं आया

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